एक तांत्रिक, एक पोस्टर , कैसे इंदिरा और संजय ने यूपी के कद्दावर सीएम हेमवती नंदन बहुगुणा को निपटा दिया

अभी अगर आप बागपत से बलिया तक ये फुसफुसाहट सुन रहे हों कि उत्तर प्रदेश में जीत के बाद क्या योगी आदित्यनाथ का दोबारा सीएम बनना तय है या शक है तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है। इंदिरा गांधी के जमाने में तो चुनाव जिताने वाले सीएम को ही कुर्सी से लात मारकर हटा दिया गया था। जी हां, चर्चा हो रही है हेमवती नंदन बहुगुणा की।

इमरजेंसी लगाने के बाद इंदिरा गांधी अपने बेटे संजय गांधी पर पूरी तरह निर्भर थीं। ये सब जानते भी हैं। मंत्रियों की पीएम से मुलाकात भी संजय क्लियर कर रहे थे। संजय गांधी ने एक बार तमतमाते हुए अपनी मां से कहा था – अगर मेरा वश चले तो मैं आपकी पूरी कैबिनेट बदल दूं। उस समय इंदिरा गांधी कैबिनेट में 54 मंत्री थे। संजय गांधी यूं ही अपनी मां के बरक्स खड़े नहीं हो गए थे। इसमें इंदिरा का पूरा हाथ था। उन्होंने अपने छोटे लाडले को यूथ कांग्रेस का सुप्रीमो बनाया। अगर बिना किसी हैसियत के संजय सरकार चलाने में दखलंदाजी करना जारी रखते तो विद्रोह का खतरा था। इसलिए इंदिरा गांधी ने संजय को पॉलिटिकल कवर दिया। पर संजय अपनी माँ के कंट्रोल से बाहर निकल चुके थे। संजय गांधी न सिर्फ केंद्र में बल्कि राज्यों में भी अपने बंदे चाहते थे। संजय को लगता था कि बंसी लाल, ओम मेहता, विद्याचरण शुक्ल, आरके धवन और अन्य नौकरशाहों को साथ लेकर पूरा देश नहीं चल सकता। इसके लिए अपने चीफ मिनिस्टर्स भी होने चाहिए।

​हर तरफ चला संजय गांधी का डंडा

दरअसल बंसी लाल हरियाणा के सीएम ही थे जिन्होंने मारुति के लिए सरकारी जमीन देकर संजय को खुश कर दिया था। संजय उन्हें अपने संग दिल्ली में रखना चाहते थे। मुंह मांगी मुराद पूरी कर दी। बंसी लाल रक्षा मंत्री बना दिए गए। स्वर्ण सिंह कैबिनेट से बाहर हो गए। अब हरियाणा में कोई ऐसा ठप्पा चाहिए था जो इशारों पर नाचे। बनारसी दास गुप्ता चुने गए। उन्हें साफ कहा गया कि असली चीफ मिनिस्टर बंसी लाल ही हैं और हर काम उनसे पूछकर होना चाहिए। फिर बारी मध्य प्रदेश की आई। यहां के सीएम पीसी सेठी को केंद्र में मंत्री बनाया गया और संजय गांधी ने श्यामाचरण शुक्ल को सीएम बना दिया।

​यूपी में संजय चाहते थे अपनी ‘सरकार’

क्षेत्रफल और दबदबे के लिहाज से उत्तर प्रदेश में संजय की सरकार का होना जरूरी था। यहां कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा सत्ता पर काबिज थे। सूबे में भारत छोड़ो आंदोलन के प्रणेता रहे बहुगुणा को हटाना आसान काम नहीं था। वो भी तब जब वो खुद कमलापति त्रिपाठी के इस्तीफे के बाद सीएम बनाए गए थे। पीएसी जवानों के विद्रोह के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। 1974 के चुनाव से पहले हेमवती नंदन बहुगुणा इंदिरा के करीबी थे और मंत्री भी। जब यूपी लौटे तो 1974 के चुनाव में कांग्रेस को 215 सीटें दिलाई। यानी स्पष्ट बहुमत। इस सरकार को हिलाना संजय गांधी के लिए आसान नहीं था।

​बहुगुणा का वो पोस्टर जिसने इंदिरा-संजय को हिलाकर रख दिया

लेकिन निरंकुश हो चुकीं इंदिरा के लिए स्वर्ण सिंह, जगजीवन राम और यंग तुर्क के अलावा बहुगुणा भी खटकने लगे थे। कुदलीप नैयर ने अपनी किताब इमरजेंसी री-टोल्ड में इसका जिक्र किया है। इंदिरा और संजय गांधी को लगा कि बहुगुणा जरूरत से ज्यादा महत्वाकांक्षी हो रहे हैं और प्रधानमंत्री का सपना देख रहे हैं। एक खास पोस्टर मां-बेटे के आंखों की किरकिरी बन गया। इसमें बहुगुणा 1974 की जीत के लिए यूपी की जनता को बधाई देते हुए दिखाए गए। पोस्टर से इंदिरा और संजय गायब थे। इसने एक सफदरजंग मार्ग में त्यौरियां चढ़ाने का काम किया। नैयर लिखते हैं कि बहुगुणा शायद पहले ही बाहर कर दिए जाते लेकिन इंदिरा को लगा कि शायद उनके जरिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा पर दबाव बन सकता है। जो हुआ नहीं।

​जब बहुगुणा के तांत्रिक पर लगा मीसा एक्ट

कुलदीप नैयर लिखते हैं.. इसके बाद संजय गांधी ने यशपाल कपूर को काम पर लगाया जिसकी वजह से इंदिरा इलाहाबाद हाई कोर्ट में केस हार गईं थीं और देश में इमरजेंसी लगाई गई। यशपाल कपूर ने संजय को बताया कि बहुगुणा लखनऊ में किसी तांत्रिक का सहारा ले रहे हैं। तंत्र मंत्र से बहुगुणा अपने दुश्मनों को मिटाने का जतन कर रहे हैं। संजय गांधी को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने यशपाल कपूर और मध्य प्रदेश के सीएम पीसी सेठी को तांत्रिक पकड़ने पर लगा दिया। अंत में उसे मीसा एक्ट के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। बहुगुणा ने बाद में बताया कि वो तांत्रिक नहीं एक वैद्य था और कमलापति त्रिपाठी भी उसकी मदद लिया करते थे।

​मिलने से इंदिरा का इनकार

अंत में खुद श्रीमती इंदिरा गांधी ने हेमवती नंदन बहुगुणा को इस्तीफा देने के लिए कहा। 29 नवंबर 1975 के दिन उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद इंदिरा ने उ्न्हें मिलने तक का समय नहीं दिया। संजय गांधी की पसंद नारायण दत्त तिवारी को यूपी का नया सीएम बनाया गया। प्रदेश के लगभग सभी बड़े नेता इस फैसले के खिलाफ थे लेकिन संजय गांधी के आगे किसी की न चली। यूपी में अपनी सरकार बनने के बाद जब भी संजय लखनऊ जाते पूरी कैबिनेट की परेड उनके सामने होती थी। प्रोटोकॉल से बेपरवाह संजय की अगुआनी एयरपोर्ट पर खुद सीएम तिवारी किया करते थे। इस व्यवहार से आहत हेमवती नदंन बहुगुणा इंदिरा के खिलाफ बिगुल बजाने वाले जगजीवन राम के बगल में बैठने वाले पहले नेता थे। हालांकि 1980 में वो वापस कांग्रेस में आए। फिर नाराज हुए और लोकदल में गए। बॉलीवुड के महानायाक अमिताभ बच्चन से मिली हार उनके पॉलिटिकल करियर का आखिरी पड़ाव था।

Source :- NBT

Rohit:

This website uses cookies.