ओमिक्रॉन का बढ़ता खौफ:डेल्टा से 5-7 गुना तेजी से फैल रहा है ओमिक्रॉन, भारत में जनवरी के अंत तक हालात बिगड़ सकते हैं

कोरोने वायरस का नया म्यूटेशन ओमिक्रॉन सबसे पहले 24 नवंबर को दक्षिण अफ्रीका में मिला था। अब तक ये करीब 100 देशों तक पहुंच चुका है और WHO को डर है कि ये दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में मौजूद है। ओमिक्रॉन की दहशत से ब्रिटेन कांप रहा है, फ्रांस डरा हुआ है, नीदरलैंड्स ने सख्त लॉकडाउन लगा दिया है। जर्मनी ने ब्रिटेन से आने वालों के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए हैं। इधर भारत भी नए हालात से निपटने की तैयारी में जुटा है।

दुनियाभर के वैज्ञानिक इस वैरिएंट को समझने और रोकने की कोशिशों में जुटे हैं। अभी तक जो पता है उससे ये साफ है कि ओमिक्रॉन डेल्टा से कई गुना तेजी से फैल रहा है। हालांकि वैज्ञानिक मानते हैं कि ये वायरस कम जानलेवा है।

वायरस के म्यूटेशन और बदलते रूप को जीनोम सीक्वेंसिंग के जरिए समझा जाता है। केंद्र सरकार ने 38 सरकारी लैबों का नेटवर्क बनाया है, जहां वायरस की जीनोम सीक्वेंसिंग की जाती है। दिल्ली में जीनोम सिक्वेंसिंग लैब इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बाइलरी साइंसेज (ILBS) में की जा रही है।

कुछ नया मिलते ही ग्लोबल साइंटिफिक कम्युनिटी को अलर्ट कर दिया जाता है

संस्थान के निदेशक डॉ. शिवकुमार सरीन की नजरें अपने कंप्यूटर स्क्रीन पर टिकी हैं। वो दुनियाभर से मिल रही रिपोर्टों को देख रहे हैं। ILBS में कोरोना के बदलते स्वरूप पर नजर रखी जा रही है। वायरस की स्टडी की जा रही है और कुछ भी नया मिलते ही स्टेट और ग्लोबल साइंटिफिक कम्युनिटी को अलर्ट कर दिया जाता है।

डॉ. सरीन कहते हैं कि ओमिक्रॉन डेल्टा वैरिएंट से कम से कम 5-7 गुना स्पीड से दुनिया में फैल रहा है। भारत में भी कई जगह ये मिल चुका है। ऐसे में आशंका है कि जनवरी अंत तक हमारे देश में भी ओमिक्रॉन के मामले काफी ज्यादा हो जाएंगे।

ILBS के निदेशक डॉ. शिवकुमार सरीन की नजरें अपने कंप्यूटर स्क्रीन पर टिकी हैं। वो दुनियाभर से मिल रही रिपोर्टों को देख रहे हैं।

डॉ. एकता गुप्ता ILBS के क्लिनिकल वायरोलॉजी विभाग की प्रमुख हैं। ILBS की जीनोम सीक्वेंसिंग लैब उन्हीं की निगरानी में चल रही है। वे और उनकी टीम सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के डेटा पर नजर रखती हैं। डॉ. एकता कहती हैं, ‘हमारा काम वायरस के स्वरूप और उसके विस्तार के पैटर्न को पकड़ना है ताकि सरकार महामारी की रोकथाम के लिए सही फैसले ले सके। अभी जो कोविड वैरिएंट भारत में लोगों में मिल रहा था वो डेल्टा ही था।’

वो कहती हैं कि ओरिजिनल वुहान वैरिएंट मिलना बंद हो चुका है। अब पिछले कुछ दिनों से ओमिक्रॉन वैरिएंट के मामले सामने आ रहे हैं और ऐसी आशंका है कि अगले कुछ सप्ताह में ओमिक्रॉन ही प्रमुख वैरिएंट हो जाएगा। शुरुआत में भारत सरकार की रणनीति ये थी के देशभर में पाजीटिव आ रहे 5% सैंपल जीनोम लैब पहुंचे ताकि ये पता लगाया जा सके कि कोरोना का कौन सा वैरिएंट अधिक एक्टिव है।

दरअसल जीनोम सीक्वेसिंग की चुनौती ये है कि इसमें समय लगता है और खर्च भी बहुत आता है। ऐसे में हो सकता है कि भविष्य में पर्याप्त संख्या में सैंपल की सीक्वेसिंग करने में चुनौतियां आएं।

कैसे होती है जीनोम सीक्वेंसिंग?

ILBS की लैब में काम कर रहे जीनोम साइंटिस्ट डॉ. प्रमोद के मुताबिक लैब में जीनोम सीक्वेंसिंग 4 चरणों में होती है…

  • सबसे पहले कोरोना पॉजिटिव सैंपल से RNA अलग किया जाता है।
  • फिर इन RNA सैंपल की लाइब्रेरी तैयार की जाती है। हर सैंपल को एक ID दी जाती है और सभी को एक साथ मिला लिया जाता है।
  • इस लाइब्रेरी को कार्टरिज पर रखकर सीक्वेंसिंग मशीन में डाला जाता है। एक कार्टरिज में अधिकतम 384 सैंपल रखे जाते हैं। मशीन इनमें से हर सैंपल को पढ़ती है और सीक्वेंस करती है। इस प्रक्रिया में 3 दिन तक का समय लग जाता है।
  • अंत में सैंपल के डाटा की एनालिसिस की जाती है और पता लगाया जाता है कि जो वायरस मिला है उसका सीक्वेंस क्या है। क्या कोई नया रूप या म्यूटेशन तो नहीं है।

डॉ. एकता कहती हैं कि ओमिक्रॉन वैरिएंट के मामले सामने आ रहे हैं और ऐसी आशंका है कि अगले कुछ सप्ताह में ओमिक्रॉन ही प्रमुख वैरिएंट हो जाएगा।

डॉ. एकता कहती हैं कि जीनोम सीक्वेंसिंग से जुटाए डेटा को स्टेट के सिस्टम में फीड किया जाता है। एक नेशनल पोर्टल है वहां भी डेटा भेजा जाता है। हम अपने डेटा को दुनियाभर की साइंटिफिक कम्युनिटी से भी शेयर करते हैं। हर सैंपल जो हम ग्लोबल सिस्टम में डालते हैं उसमें लैब का ईमेल भी होता है। यदि कोई ऐसी चीज है जो हमें नहीं दिखी और किसी और साइंटिस्ट को दिख रही है तो वो तुरंत ईमेल के जरिए हमें सूचित कर देते हैं। एक तरह से दुनियाभर के वायरोलॉजिस्ट मिलकर काम कर रहे हैं।

उनके मुताबिक ILBS लैब में जिन सैंपल की सीक्वेंसिंग की गई थी, उनमें नवंबर के अंत में डेल्टा वैरिएंट ही मिल रहा था। अब कुछ नए सैंपल में ओमिक्रॉन भी मिला है। शुक्रवार को ही लैब में ओमिक्रॉन के 2 केसों की पुष्टि हुई है।

डॉ. एकता कहती हैं, ‘सीक्वेंसिंग की भूमिका सर्विलांस और रोकथाम में अधिक है। हम सीक्वेंसिंग करते हैं ताकि बीमारी को फैलने से पहले रोका जा सके। एक बार बीमारी फैल जाती है तो सीक्वेंसिंग के जरिए डेटा कलेक्ट किया जाता है ताकि नीतिगत फैसले लिए जा सकें।’

ओमिक्रॉन एक ऐसा वैरिएंट है जिसमें स्पाइक प्रोटीन में कई म्यूटेशन दिखाई दे रहे हैं। स्पाइक प्रोटीन इस वायरस का अहम प्रोटीन है क्योंकि वो ही अटैच करता है और वायरस फैलता है। वैक्सीन भी इसी के लिए बनाई गई है। इसी वजह से वैज्ञानिक को आशंका है कि ये वायरस बड़े पैमाने पर लोगों को संक्रमित करेगा।

डॉ. एकता कहती हैं कि ये वायरस खतरनाक इसलिए है क्योंकि इसकी वायरेलिटी बहुत ज्यादा है। अभी तक जो डेटा मिला है उसमें संतोषजनक बात ये दिखाई दे रही है कि जो लोग ओमिक्रॉन से संक्रमित हो रहे हैं वो गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़ रहे हैं और अधिकतर लोग अपने आप ही ठीक हो रहे हैं। इसकी मृत्युदर भी कम है।

ILBS लैब में जिन सैंपल की सीक्वेंसिंग हुई है उनमें शुक्रवार को ही ओमिक्रॉन के 2 केसों की पुष्टि हुई है।

डॉ. वरुण जीनोम साइंटिस्ट हैं और वो ILBS की लैब में वायरस के जीनोम सीक्वेंस का अध्ययन करते हैं। ग्लोबल डेटा का ग्राफ दिखाते हुए वो कहते हैं कि भारत में भी ओमिक्रॉन के मामले तेजी से बढ़ेंगे। डेल्टा में स्पाइक प्रोटीन में 15 से 18 म्यूटेशन देखने को मिले थे, ओमिक्रॉन में सिर्फ स्पाइक प्रोटीन में 30 से अधिक म्यूटेशन दिख चुके हैं। हो सकता है आगे और भी म्यूटेशन दिखें।

भारत कितना तैयार है?

डॉ. शिवकुमार सरीन कहते हैं, ‘हमारे पास दूसरी लहर का अनुभव है। ट्रेंड डॉक्टर और स्टाफ है। हमारा इन्फ्रास्ट्रक्चर भी बेहतर हुआ है, लेकिन ओमिक्रॉन के खिलाफ लड़ाई में कामयाबी इस बात पर निर्भर करेगी कि लोग कितने तैयार हैं। मास्क ही हमें वायरस से बचाएगा। वैक्सीन ही हमें वायरस से सुरक्षा देगी। वायरस से बचने के लिए लोगों को सेल्फ लॉकडाउन लगाना होगा। बेवजह बाहर निकलना बंद करना होगा।’

वे कहते हैं, ‘हमें नए से नए म्यूटेशन को पकड़ना और उसकी जांच करना जरूरी है। ये सब जीनोम सीक्वेंसिंग से होता है। ILBS की जीनोम सीक्वेंसिंग लैब काफी एडवांस हैं। यदि जरूरत पड़ी तो हम समय रहते इसकी कैपेसिटी को बढ़ा भी सकते हैं।’

डॉ. एकता वायरस के बदलते स्वरूप को लेकर चिंतित हैं। वो कहती हैं कि ये नहीं कहा जा सकता कि ओमिक्रॉन कोरोना का अंतिम म्यूटेशन हैं। हम इस वायरस को रोकने की कोशिश कर रहे हैं और वायरस अपने अस्तित्व को बचाने की। ऐसे में वो अपना स्वरूप बदल रहा है और हो सकता है कि आगे भी अपना रूप बदले।

Source :- Danik Bhaskar

Delhi Desk:

This website uses cookies.